Sunday, May 18, 2008

समर्पन

माया की माया छुट्कर
तेरी माय मे बन्धने की
मेरी एक चाह है

मेरे आन्सुओ से
तेरे मे समरिपेत करने की
मेरी एक चाह है

ब्रहम के नाना रूप को
तेरे मेइ दर्शन करने की
मेरी एक चाह है

2 comments:

Amit K Sagar said...

सबकुछ बहुत उम्दा. लिखते रहिये. और भी अच्छा लिखे, कामना करते हैं. शुभकामनायें.
---
उल्टातीर: ultateer.blogspot.com

Amit K Sagar said...

सबकुछ बहुत उम्दा. लिखते रहिये. और भी अच्छा लिखे, कामना करते हैं. शुभकामनायें.
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उल्टातीर: ultateer.blogspot.com