Sunday, March 4, 2007

अर्ज

अर्ज है मेरी तुझसे हे ंंमां
शकित दे मुझे
अपने मे लेीन करने दे|

तेरी ईस अकीन्च्न को
कुच कर गुजरने की
एक आदर्श बनने की शकित दे मुझे
अर्ज है मेरी तुझसे हे मां|

तेरी इस दीवानी को
मोह्मया के जाल मे
न बंध्ने की
अर्ज है मेरी तुझसे हे मां|

तेरी इस तुच को
तमेील सन्तो की भिकत
इस साधन मे उतारने की
अर्ज है मेरी तुझसे हे मां|

तेरी इस आत्मा को
पर्मत्मा के दर्शन से
पावन कर देने की
अर्ज है मेरी तुझसे हे मां|

थक गयी हु,नही सह पाती
तेरे इस िवषचकक्र को
अपने िन्र्गुण सिच्चदान्ंद स्वरुप मे
िन्राकार शाश्वत सत्य मे िविलन कर देने की
अर्ज है मेरी तुझसे हे मां|

भुवनेश्वरी पाठक