अर्ज है मेरी तुझसे हे ंंमां
शकित दे मुझे
अपने मे लेीन करने दे|
तेरी ईस अकीन्च्न को
कुच कर गुजरने की
एक आदर्श बनने की शकित दे मुझे
अर्ज है मेरी तुझसे हे मां|
तेरी इस दीवानी को
मोह्मया के जाल मे
न बंध्ने की
अर्ज है मेरी तुझसे हे मां|
तेरी इस तुच को
तमेील सन्तो की भिकत
इस साधन मे उतारने की
अर्ज है मेरी तुझसे हे मां|
तेरी इस आत्मा को
पर्मत्मा के दर्शन से
पावन कर देने की
अर्ज है मेरी तुझसे हे मां|
थक गयी हु,नही सह पाती
तेरे इस िवषचकक्र को
अपने िन्र्गुण सिच्चदान्ंद स्वरुप मे
िन्राकार शाश्वत सत्य मे िविलन कर देने की
अर्ज है मेरी तुझसे हे मां|
भुवनेश्वरी पाठक
Sunday, March 4, 2007
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
5 comments:
A very good attempt Bhuvan.....I really liked this one as it gives the message of restoring your inner strength in order to acheive the aim in all odds ad ons in ones life...
Keep it up....
hello!!!!
really a good one read after a long time
kkep writing
keep updating
well said....
after a long time read a good poem
keep updating
keep writing
well said....
after a long time read a good poem
keep updating
keep writing
well said....
after a long time read a good poem
keep updating
keep writing
Post a Comment