माया की माया छुट्कर
तेरी माय मे बन्धने की
मेरी एक चाह है
मेरे आन्सुओ से
तेरे मे समरिपेत करने की
मेरी एक चाह है
ब्रहम के नाना रूप को
तेरे मेइ दर्शन करने की
मेरी एक चाह है
Sunday, May 18, 2008
Sunday, July 1, 2007
SAMARPAN
समर्पन
तेरेी शक्ति मे मेरेी भक्ति
ये अकिन्चन जेीवन समर्पित्
तेरेी मम्ता म मेरा बच्पन्
ये अकिन्चन जेीवन समर्पेीत
तेरे करुना सागर मे
ये अकिन्चन जेीवन समर्पेीत
मात पिता के रुन म त्रुन बन्
ये अकिन्चन जेीवन समर्पेीत
तेरेी शक्ति मे मेरेी भक्ति
ये अकिन्चन जेीवन समर्पित्
तेरेी मम्ता म मेरा बच्पन्
ये अकिन्चन जेीवन समर्पेीत
तेरे करुना सागर मे
ये अकिन्चन जेीवन समर्पेीत
मात पिता के रुन म त्रुन बन्
ये अकिन्चन जेीवन समर्पेीत
Friday, April 27, 2007
Jeevan Path
जीवन पथ पर तेरी भक्ति से
संवारना हैइस जीव को
शाश्वत देह की आत्मलीनता से
संवारना है इस जीव को
नैसर्गिक प्रकृति को अपना कर
संवारना है इस जीव को
मानव धर्म सह मोक्श यात्रा से
सवारना है ईस जीव को
संवारना हैइस जीव को
शाश्वत देह की आत्मलीनता से
संवारना है इस जीव को
नैसर्गिक प्रकृति को अपना कर
संवारना है इस जीव को
मानव धर्म सह मोक्श यात्रा से
सवारना है ईस जीव को
Thursday, April 12, 2007
ASHA
Jivan teri den hai
Iis den ko savarne ki
Asha hai ek-KIRAN KI
Mushkil paristithiyon mein
Himalaya adag rehne ki
Asha hai ek –KIRAN KI
Vasant baharon mein jhumkar
Dusron ko jhumane ki
Asha hai ek- KIRAN KI
Mata-pita ke run ko
Trun ban sarthak karne ki
Asha hai ek-KIRAN KI
Dubti jivan naiya ko
Teri Bhakti se ugrane karne ki
Asha hai ek-KIRAN KI
Iis den ko savarne ki
Asha hai ek-KIRAN KI
Mushkil paristithiyon mein
Himalaya adag rehne ki
Asha hai ek –KIRAN KI
Vasant baharon mein jhumkar
Dusron ko jhumane ki
Asha hai ek- KIRAN KI
Mata-pita ke run ko
Trun ban sarthak karne ki
Asha hai ek-KIRAN KI
Dubti jivan naiya ko
Teri Bhakti se ugrane karne ki
Asha hai ek-KIRAN KI
Saturday, April 7, 2007
Friday, March 23, 2007
चाह
अन्तर के क़ीसी कोने मे
ुकुच कर गुजरने की आशा सी
कीसी को देदीप्यमान कर्ने की
समाई हुई है एक चाह
कीसी को अपना बनाने की
कीसी से न िब्चडने की
ईसी तरह दुस्रोन को प्रकाशित कर्ने की
समाई हुई है एक चाह
गुरु को वन्दन कर्ने की
उनकी अम्रुत्वाणी से
अप्नी राह बनाने की
समाई हुई है एक चाह
माता पीता के इस ऋण को
तृण बन स्वीकार क
र्न भुल्ने की
समाई हुई है एक चाह
नेीरन्तर नेीराकार म लेीन रह्ने की
अकिन्चन बन सचिदान्नद मे मील जाने की
िन्र्गुण स्वरुप म वेीलेीन होक मोक्श पाने की
समाई हुई है एक चाह
भुवनेश्वरी पाठक
ुकुच कर गुजरने की आशा सी
कीसी को देदीप्यमान कर्ने की
समाई हुई है एक चाह
कीसी को अपना बनाने की
कीसी से न िब्चडने की
ईसी तरह दुस्रोन को प्रकाशित कर्ने की
समाई हुई है एक चाह
गुरु को वन्दन कर्ने की
उनकी अम्रुत्वाणी से
अप्नी राह बनाने की
समाई हुई है एक चाह
माता पीता के इस ऋण को
तृण बन स्वीकार क
र्न भुल्ने की
समाई हुई है एक चाह
नेीरन्तर नेीराकार म लेीन रह्ने की
अकिन्चन बन सचिदान्नद मे मील जाने की
िन्र्गुण स्वरुप म वेीलेीन होक मोक्श पाने की
समाई हुई है एक चाह
भुवनेश्वरी पाठक
Sunday, March 4, 2007
अर्ज
अर्ज है मेरी तुझसे हे ंंमां
शकित दे मुझे
अपने मे लेीन करने दे|
तेरी ईस अकीन्च्न को
कुच कर गुजरने की
एक आदर्श बनने की शकित दे मुझे
अर्ज है मेरी तुझसे हे मां|
तेरी इस दीवानी को
मोह्मया के जाल मे
न बंध्ने की
अर्ज है मेरी तुझसे हे मां|
तेरी इस तुच को
तमेील सन्तो की भिकत
इस साधन मे उतारने की
अर्ज है मेरी तुझसे हे मां|
तेरी इस आत्मा को
पर्मत्मा के दर्शन से
पावन कर देने की
अर्ज है मेरी तुझसे हे मां|
थक गयी हु,नही सह पाती
तेरे इस िवषचकक्र को
अपने िन्र्गुण सिच्चदान्ंद स्वरुप मे
िन्राकार शाश्वत सत्य मे िविलन कर देने की
अर्ज है मेरी तुझसे हे मां|
भुवनेश्वरी पाठक
शकित दे मुझे
अपने मे लेीन करने दे|
तेरी ईस अकीन्च्न को
कुच कर गुजरने की
एक आदर्श बनने की शकित दे मुझे
अर्ज है मेरी तुझसे हे मां|
तेरी इस दीवानी को
मोह्मया के जाल मे
न बंध्ने की
अर्ज है मेरी तुझसे हे मां|
तेरी इस तुच को
तमेील सन्तो की भिकत
इस साधन मे उतारने की
अर्ज है मेरी तुझसे हे मां|
तेरी इस आत्मा को
पर्मत्मा के दर्शन से
पावन कर देने की
अर्ज है मेरी तुझसे हे मां|
थक गयी हु,नही सह पाती
तेरे इस िवषचकक्र को
अपने िन्र्गुण सिच्चदान्ंद स्वरुप मे
िन्राकार शाश्वत सत्य मे िविलन कर देने की
अर्ज है मेरी तुझसे हे मां|
भुवनेश्वरी पाठक
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